बेरोजगारी और नोटबंदी आर्थिक मंदी की सबसे बड़ी वजह है। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है ”बेरोजगारी और नोटबंदी इसकी बहुत बड़ी वजह है बेरोजगारी की वजह से लोग कम वेतन पर काम करने को मजबूर हैं। प्राइवेट सेक्टर में बहुत से कर्मचारी अपने वेतन को लेकर मोलभाव करने की स्थिति में आ चुके हैं।
हिंदुस्तान.कॉम के मुताबिक नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस पॉलिसी के प्रोफेसर भानुमूर्ति का कहना है ”अर्थव्यवस्था में सुस्ती के संकेत 2016 में की गई नोटबंदी की शुरुआत से ही होने लगा था वर्ष 2017 में वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी लगाकर इसे और बढ़ावा दिया गया है
स्मार्टफोन मार्केट पर मंदी का कोई असर नहीं
भारत में मंदी के दौर में स्मार्टफोन बाजार शामिल नहीं है। शाओमी इंडिया ने बताया कि स्मार्टफोन की बिक्री पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा है क्योंकि त्योहारों का सीजन करीब आ रहा है।
इंटरनेशनल डाटा कॉरपोरेशन के मुताबिक भारतीय स्मार्टफोन बाजार में 2019 की दूसरी तिमाही में अब तक की सर्वाधिक बिक्री दर्ज की गई है। जो कि कुल 3.69 करोड स्मार्टफोन की रही। यह साल दर साल 9.9% तिमाही आधार पर 14.8 की बढ़ोतरी कर रही है।
शोओमी इंडिया के ऑनलाइन बिक्री के प्रमुख रघु रेड्डी ने कहा कि ”हमने साल की पहली छमाही में स्मार्टफोन बाजार को 8 से 9 फ़ीसदी की रफ्तार से बढ़ते देखा और इन आंकड़ों के आधार पर हम उम्मीद करते हैं कि आगे भी वृद्धि दर जारी रहेगी खासतौर से त्यौहारी सीजन में और भी ज्यादा बिक्री बढ़ेगी।
उन्होंने यह भी कहा कि लोग स्मार्टफोन के बिना जिंदा नहीं रह सकते अगर वर्तमान स्मार्टफोन खराब हो जाता है तो लोग नया स्मार्टफोन खरीदे बिना नहीं रह सकते मेरा मानना है कि मंदी से प्रभावित होने वाला यह आखिरी क्षेत्र होगा, रेड्डी ने कहा कि स्मार्टफोन ही नहीं बल्कि शोओमी के टीवी की भी अच्छी बिक्री हो रही है।
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पेट्रोलियम पदार्थ भी आएंगे जीएसटी के दायरे में
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के अंतर्गत आने के संकेत दे दिए हैं। उनका कहना है सरकार बजट के जरिए सभी क्षेत्रों को अपना सहयोग दे रही है। सरकार किसानों को अपने बजट के माध्यम से सबसे ज्यादा सहयोग देती है क्योंकि भारत कृषि प्रधान देश है।
उनका मानना है कि सोने के बढ़ते दामों पर स्थिरता लाना थोड़ा मुश्किल होगा क्योंकि इसके दाम देश से बाहर तय होते हैं सोने का देश में उत्पादन नहीं होता सोना आयात किया जाता है।
एक तिहाई टेक्सटाइल मिलें बंद
ऑटो सेक्टर, मध्यम एवं सूक्ष्म लघु उद्योग सेक्टर और इसके साथ ही टेक्सटाइल मिले भी मंदी का शिकार होती दिखाई दे रही है। टेक्सटाइल मिलों का दावा है कि बड़ी तादाद में नौकरियां खत्म होती जा रही हैं और इसके साथ ही देश भर में एक तिहाई मिलें बंद भी हो चुकी हैं।
एनडीटीवी के रवीश कुमार ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा ”नॉर्दन इनकॉरपोरेशन का दावा है कि भारतीय उद्योग मंदी के दौर से गुजर रहा है जिसके कारण बड़ी संख्या में नौकरियां खत्म होती जा रही है आपको बता दें कि मंगलवार को एक बड़ा सा विज्ञापन छपा था।
जिसमें कर्मचारी नौकरी से निकलते दिखाई दे रहे हैं इसके नीचे लिखा है कि एक तिहाई मिलें बंद हो चुकी हैं और जो चल रही हैं उनकी स्थिति ऐसी है कि वे भारतीय कपास नहीं खरीद सकती। कपास की आगामी फसल का कोई खरीदार नहीं होगा। अनुमान है कि 80हजार करोड़ का कपास का कोई खरीदार नहीं है।”
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फरीदाबाद टेक्सटाइल एसोसिएशन के अनिल जैन ने एनडीटीवी के रवीश कुमार को बताया कि टेक्सटाइल सेक्टर में 25 से 50 लाख के बीच नौकरियां गई हैं इस संख्या पर यकीन नहीं हुआ लेकिन टेक्सटाइल सेक्टर के विज्ञापन देखकर उनकी बताई बात की हमारे सामने मानो तस्वीर बन गयी हो।
उन्होंने यह भी लिखा कि ”नरेंद्र मोदी सरकार ने वर्ष 2016 में 6000 करोड रुपए के पैकेज का जोर शोर से ऐलान किया था और दावा किया था कि 3 साल में एक करोड़ रोजगार पैदा होंगे उल्टा नौकरियां चली गई।
पैकेज के ऐलान के वक्त खूब संपादकीय लिखे गए थे, तारीफ हो रही थी। लेकिन आज उसका उल्टा होते दिखाई दे रहा है, कम्पनियो को यहाँ खुद ही अखबार में विज्ञापन देना पड़ रहा है कि उनकी मिलों को सहायता चाहिए।
5000 कारोबारियों ने बदला अपना कारोबार
5000 कपड़ा व्यापारियों ने कारोबार बदला। जीएसटी लागू होने के बाद कपड़ा व्यापारियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। 5000 कारोबारियों ने तो अपने व्यापार को ही बदल दिया जो कि अब कुछ और व्यापार करने में लगे हुए।
छोटे व्यापारी की नहीं बड़े व्यापारी भी इन समस्याओं से जूझ रहे हैं ग्रामीण इलाकों में बैंकों से लोन लेकर व्यवसाय करना आसान काम नहीं है फिर कारोबार करने वाले स्वयं पढ़े लिखे भी नहीं हैं।
पूर्व में पूँजी कम होने के कारण छोटे व्यापारियों का कामकाज आसानी से नहीं चल पाता था और अब थोक व्यापारी जीएसटी की फाइल बनाने और रिटर्न भरने में ही उलझे रहते हैं।
पारले भी अपने 10000 कर्मचारियों की कर सकता है छुट्टी
इंडिया टुडे से बातचीत के दौरान शाह ने कहा है कि पारले जी की मांग में लगातार गिरावट देखी जा रही है। उन्होंने कहा कि ”इससे निपटने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किए लेकिन वह कारण को समझने में असक्षम है।
उनके मुताबिक उन्होंने मार्केट में प्रोडक्ट की मार्केटिंग पर भी काफी ध्यान दिया इसके अलावा प्रोडक्ट के बारे में कस्टमर को भी समझाने का प्रयास किया, लेकिन टैक्स बढ़ोतरी व आर्थिक सुस्ती के कारण बिक्री में कोई सुधार नहीं आया है।”
शाह का कहना है कि जीएसटी लागू होने के बाद पारले कंपनी की हालत बिगड़ी है उन्होंने कहा बिस्किट को मुख्य तौर पर दो केटेगरी ₹100 प्रति किलो से ज्यादा और कम में बांटा गया जीएसटी लागू होने से पहले ₹100 प्रति किलो से कम कीमत वाले बिस्कुट पर 12% टैक्स लगाया जाता था।
जीएसटी लागू होने के बाद यह हालात बदल गए और सभी बिस्कुटो को 18% स्लैब में डाल दिया जो ठीक नहीं था। इसका असर यह हुआ कि बिस्किट कंपनियों को इसके दाम बढ़ाने पड़े इस वजह से बिक्री में गिरावट आ गई।
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